अपने मन को कोई किस प्रकार वश में करके उसे शान्त बना सकता है?
बाह्य आकर्षण वाले इस नाम-रूपात्मक जगत के कोलाहल से अपने मन को हटाकर उसे एक अद्भुत आतंरिक शांति-संपन्न और अनुपम आनंदमयी स्थिति में कैसे पहुँचाया जा सकता है?
भय और सीमाबद्धता के विवश भाव से हम कैसे मुक्त हो सकते हैं?
प्रस्तुत पुस्तक "आत्म-चिन्तन की कला" में स्वामी चिन्मयानंदजी उपर्युक्त सभी प्रश्नों का सटीक उत्तर दिया है - अपनी विशिष्ट काव्यात्मक शैली में | ये छः सरल सोपान प्रस्तुत करते है जिनका नियमित अभ्यास किया जाना चाहिए |
स्वामीजी क्रमशः एक एक सोपान उद्घाटित करते चलते हैं कि पहला आप शरीर को कैसे स्थिर करें, फिर अपना मंत्र-जप कैसे शुरू करें | यहाँ भी वे नाना मंत्रोच्चार बताते हैं | फिर, क्रमशः अपने में साक्षी भाव कैसे लाएँ और अंत में अपने नकारात्मक भावों से कैसे छुटकारा पाकर स्वयं ही उस परम शांति और आनंद को अनुभूत करें |
'हमारे मन के उस पार क्या है' - यह खोज ही आध्यात्मिक खोज है | और 'दिव्य परमानन्द कि सम्यक सुखद अनुभूति' ही जीवन का लक्ष है |
[ Art of Contemplation ]
A2015VARIANT | SELLER | PRICE | QUANTITY |
---|
अपने मन को कोई किस प्रकार वश में करके उसे शान्त बना सकता है?
बाह्य आकर्षण वाले इस नाम-रूपात्मक जगत के कोलाहल से अपने मन को हटाकर उसे एक अद्भुत आतंरिक शांति-संपन्न और अनुपम आनंदमयी स्थिति में कैसे पहुँचाया जा सकता है?
भय और सीमाबद्धता के विवश भाव से हम कैसे मुक्त हो सकते हैं?
प्रस्तुत पुस्तक "आत्म-चिन्तन की कला" में स्वामी चिन्मयानंदजी उपर्युक्त सभी प्रश्नों का सटीक उत्तर दिया है - अपनी विशिष्ट काव्यात्मक शैली में | ये छः सरल सोपान प्रस्तुत करते है जिनका नियमित अभ्यास किया जाना चाहिए |
स्वामीजी क्रमशः एक एक सोपान उद्घाटित करते चलते हैं कि पहला आप शरीर को कैसे स्थिर करें, फिर अपना मंत्र-जप कैसे शुरू करें | यहाँ भी वे नाना मंत्रोच्चार बताते हैं | फिर, क्रमशः अपने में साक्षी भाव कैसे लाएँ और अंत में अपने नकारात्मक भावों से कैसे छुटकारा पाकर स्वयं ही उस परम शांति और आनंद को अनुभूत करें |
'हमारे मन के उस पार क्या है' - यह खोज ही आध्यात्मिक खोज है | और 'दिव्य परमानन्द कि सम्यक सुखद अनुभूति' ही जीवन का लक्ष है |
[ Art of Contemplation ]