प्रत्येक मानव जीवन में सुख और शांति चाहता है | आगे बढ़ना चाहता है औरो की अपेक्षा अधिक तथा शीघ्र आगे बढ़ना चाहता है | यह हम सबकी सहज स्वाभाविक मांग है.तथापि सभी को उसका उचित उपाय, आगे बढ़ाने का सही मन्तव्य ज्ञात नहीं होता है | परिणामस्वरुप धन-संचय की अन्धी दौड़ में वे सब ऐसे उलझ जाते है की उनका जीवन तनाव ग्रस्त हो जाता है | बुद्धि विक्षिप्त हो जाती है और मनोबल टूटने लगता है |
इन सबसे छूटने का, अपनी स्वाभाविक मांग को पूर्ण करने का,आन्तिरिक विकास का सुनिचित उपाय हमें श्रीमद्भगवत गीता से प्राप्त होता है | उसी का अति सरल व् व्यावहारिक रूप हमें स्वामी प्रशान्तनंदाजी द्वारा विरचित गीता पढ़ो आगे बढ़ो नामक इस पुस्तिका में उपलब्ध है |
G2013VARIANT | SELLER | PRICE | QUANTITY |
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प्रत्येक मानव जीवन में सुख और शांति चाहता है | आगे बढ़ना चाहता है औरो की अपेक्षा अधिक तथा शीघ्र आगे बढ़ना चाहता है | यह हम सबकी सहज स्वाभाविक मांग है.तथापि सभी को उसका उचित उपाय, आगे बढ़ाने का सही मन्तव्य ज्ञात नहीं होता है | परिणामस्वरुप धन-संचय की अन्धी दौड़ में वे सब ऐसे उलझ जाते है की उनका जीवन तनाव ग्रस्त हो जाता है | बुद्धि विक्षिप्त हो जाती है और मनोबल टूटने लगता है |
इन सबसे छूटने का, अपनी स्वाभाविक मांग को पूर्ण करने का,आन्तिरिक विकास का सुनिचित उपाय हमें श्रीमद्भगवत गीता से प्राप्त होता है | उसी का अति सरल व् व्यावहारिक रूप हमें स्वामी प्रशान्तनंदाजी द्वारा विरचित गीता पढ़ो आगे बढ़ो नामक इस पुस्तिका में उपलब्ध है |