मानव मस्तिष्क सांसारिक उपलब्धियों में इतना उलझा रहता है कि ठोकरें खाते रहने पर भी संसार से स्वयं को पृथक नहीं कर पाता | इस प्रकार व्यस्त मस्तिष्क को ज्ञात ही नहीं होता कि उसेस कैसें छुटे | ऐसे`समय पर ईश्वर या प्रज्ञावान व्यक्ति ही उसे प्रकाश दिखा सकता है |
ऐसी ही समस्या को लेकर सनतकुमार आदि सुष्टिकर्ता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे | ब्रह्मा जी ने स्वीकार किया कि वे उनका मन सुष्टि निर्माण कार्य में |निमग्न है,अति व्यस्त है, अतः उन्हें उपाय नहीं सूझ रहा है| तब परब्रह्म परमेश्वर स्वयं 'हंस'के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने सत्य का ज्ञान कराया |
श्रीमदभागवत का यह प्रसंग 'हंस गीता' कहलाता है |
पूज्य स्वामी तेजोमयानन्दजी द्वारा प्रस्तुत सुबोध व्याख्या इस समस्या को समझने और उसका व्यावहारिक उपाय जानने में सहायता करती है, जिससे हम सत्य की खोज में आगे बढ़ जाते हैं|
H2008VARIANT | SELLER | PRICE | QUANTITY |
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मानव मस्तिष्क सांसारिक उपलब्धियों में इतना उलझा रहता है कि ठोकरें खाते रहने पर भी संसार से स्वयं को पृथक नहीं कर पाता | इस प्रकार व्यस्त मस्तिष्क को ज्ञात ही नहीं होता कि उसेस कैसें छुटे | ऐसे`समय पर ईश्वर या प्रज्ञावान व्यक्ति ही उसे प्रकाश दिखा सकता है |
ऐसी ही समस्या को लेकर सनतकुमार आदि सुष्टिकर्ता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे | ब्रह्मा जी ने स्वीकार किया कि वे उनका मन सुष्टि निर्माण कार्य में |निमग्न है,अति व्यस्त है, अतः उन्हें उपाय नहीं सूझ रहा है| तब परब्रह्म परमेश्वर स्वयं 'हंस'के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने सत्य का ज्ञान कराया |
श्रीमदभागवत का यह प्रसंग 'हंस गीता' कहलाता है |
पूज्य स्वामी तेजोमयानन्दजी द्वारा प्रस्तुत सुबोध व्याख्या इस समस्या को समझने और उसका व्यावहारिक उपाय जानने में सहायता करती है, जिससे हम सत्य की खोज में आगे बढ़ जाते हैं|