हस्तामलक भगवान श्री शंकराचार्य जी के शिष्य थे | उन्हें बालपन में ही आत्मसाक्षातकार हो गया था | गुरु शिष्य के मध्य हुये संवाद मैं आत्मज्ञान हथेली पर रखे आँवले की तरह (करतलामलकवत) स्पष्ट रूप में शब्दांकित है | भगवान शंकराचार्य विरचित इन श्लोकों पर संत एकनाथ महाराज ने मराठी भाषा में ओवीबध्द टीका लिखकर विस्तृत व्याख्या की है | प्रस्तुत पुस्तक में मूल हस्तामलक स्तोत्र, संत एकनाथ महाराज के सदर्भित ओवी पद तथा परमपूज्य स्वामी पुरुषोत्तमानंदाजी के चिंतन का समावेश बड़े सुन्दर ढंग से किया गया है |
ग्रन्थ छोटा होते हुये भी अध्यात्मिक साधना की दॄष्टि से अंत्यत महत्वपूर्ण है | इसका गहन अध्ययन व मनन जिज्ञासू साधकों के लिये अतिशय लाभकारी व सहायक है | परमतत्व के साक्षात्कार की दॄष्टि से यह बहुमूल्य ग्रंथ है |
H2007VARIANT | SELLER | PRICE | QUANTITY |
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हस्तामलक भगवान श्री शंकराचार्य जी के शिष्य थे | उन्हें बालपन में ही आत्मसाक्षातकार हो गया था | गुरु शिष्य के मध्य हुये संवाद मैं आत्मज्ञान हथेली पर रखे आँवले की तरह (करतलामलकवत) स्पष्ट रूप में शब्दांकित है | भगवान शंकराचार्य विरचित इन श्लोकों पर संत एकनाथ महाराज ने मराठी भाषा में ओवीबध्द टीका लिखकर विस्तृत व्याख्या की है | प्रस्तुत पुस्तक में मूल हस्तामलक स्तोत्र, संत एकनाथ महाराज के सदर्भित ओवी पद तथा परमपूज्य स्वामी पुरुषोत्तमानंदाजी के चिंतन का समावेश बड़े सुन्दर ढंग से किया गया है |
ग्रन्थ छोटा होते हुये भी अध्यात्मिक साधना की दॄष्टि से अंत्यत महत्वपूर्ण है | इसका गहन अध्ययन व मनन जिज्ञासू साधकों के लिये अतिशय लाभकारी व सहायक है | परमतत्व के साक्षात्कार की दॄष्टि से यह बहुमूल्य ग्रंथ है |