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परम सत्य निस्सीम और निरपेक्ष है | शब्द और विचार सीमित और सापेक्ष है, इसलिए उनके द्वारा परम सत्य की परिभाषा नहीं की जा सकती है |शास्त्रों में परम सत्य की जो भी व्याख्या की गई है वह उसकी और केवल इंगित करती है या उसका वर्णन करती है |
परम सत्य के बार में इस प्रकार का एक "इशारा" जो कि उसकी बहुत सुन्दर और प्रभावशाली व्याख्या करता है, वो है श्री गुरु ग्रंथ साहब में श्री गुरु नानक देव द्वारा प्रणीत मूलमंत्र "इक ओंकार"| जैसा कि उसके नाम से ही मालूम पड़ता है "मूल मंत्र" सत्य के ज्ञान के स्तोत्र है | यदि इस मंत्र का ध्यान पुरी लगन और एकाग्रता से किया जाए तो यह मंत्र ऐसा साधन बन जाएगा जिसकी सहायता से आप ध्यान की उस चरम सीमा तक पहुंच सकेंगे जहाँ शान्तिपूर्ण निस्सीम चैतन्य की अनुभूति होती है |