प्रस्तुत "सदाचार" ग्रन्थ श्री आदिशंकराचार्यजी की रचना है | इसके ५४ श्लोकों में आचार्यजी ने आत्मज्ञ सत्पुरुष के आचरण का वर्णन किया है | यह ग्रन्थ, मुमुक्ष व् जिज्ञासु साधकों के लिए आचरण के सम्ब्ध में उपयोगी मार्गदर्शन करता है |
ग्रन्थ के प्रारम्भ में इसका प्रयोजन बताते हुए आचार्य कहते हैं-योगिनां ज्ञानसिद्धये" अर्थात यह जिज्ञासुओं द्वारा ज्ञान सिद्धि प्राप्त करने हेतु हैं | ग्रन्थ समापन में फलश्रुति बताते हुए आचार्य कहते है, "संसारसागरात शीघ्रं मुच्यन्ते" अर्थात ग्रन्थ का नित्य अनुसंधान जन्म-मरण रूपी संसार सागर से मुक्त करने वाला है |
यह प्रसाद रूप ग्रन्थ संस्कृत भाषा में है जिसका स्वामीजी ने बहुत सुन्दर और विस्तृत विवेचन किया है | महाराष्ट्र के महान संत श्री हंसराज महाराज कृत व्याख्या के ओवी पदों का संदर्भ देने से यह विवेचन सारगर्भित और स्पष्ट है | यह ग्रन्थ जिज्ञासुओं को साधना हेतु निर्देशन देने के लिए तथा सिद्ध महात्माओं को आत्म-विचार पूर्वक स्वानन्द में रमे रहने के लिए उपयुक्त है|
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प्रस्तुत "सदाचार" ग्रन्थ श्री आदिशंकराचार्यजी की रचना है | इसके ५४ श्लोकों में आचार्यजी ने आत्मज्ञ सत्पुरुष के आचरण का वर्णन किया है | यह ग्रन्थ, मुमुक्ष व् जिज्ञासु साधकों के लिए आचरण के सम्ब्ध में उपयोगी मार्गदर्शन करता है |
ग्रन्थ के प्रारम्भ में इसका प्रयोजन बताते हुए आचार्य कहते हैं-योगिनां ज्ञानसिद्धये" अर्थात यह जिज्ञासुओं द्वारा ज्ञान सिद्धि प्राप्त करने हेतु हैं | ग्रन्थ समापन में फलश्रुति बताते हुए आचार्य कहते है, "संसारसागरात शीघ्रं मुच्यन्ते" अर्थात ग्रन्थ का नित्य अनुसंधान जन्म-मरण रूपी संसार सागर से मुक्त करने वाला है |
यह प्रसाद रूप ग्रन्थ संस्कृत भाषा में है जिसका स्वामीजी ने बहुत सुन्दर और विस्तृत विवेचन किया है | महाराष्ट्र के महान संत श्री हंसराज महाराज कृत व्याख्या के ओवी पदों का संदर्भ देने से यह विवेचन सारगर्भित और स्पष्ट है | यह ग्रन्थ जिज्ञासुओं को साधना हेतु निर्देशन देने के लिए तथा सिद्ध महात्माओं को आत्म-विचार पूर्वक स्वानन्द में रमे रहने के लिए उपयुक्त है|