गोस्वामी तुलसीदासजी विरचित श्रीरामचरितमानस में कहा गया है की रामकथा गूढ है जिसमें अनेक रत्न छिपे हुए हैं। जैसे पर्वतों मे छिपे हुए मणियों को देखने के लिए एक मर्मी की आवश्यकता होती है वैसे ही रामकथा की भी बात है। स्वामी तेजोमयानन्दजी ने अपने प्रवचनों में स्वयंप्रकाश भक्ति मणि को मधुर व सरल भाषा में प्रकट किया है। इसी प्रकार अध्यात्म के अन्यान्य विषयों पर भी प्रकाश डाला है। कथा श्रवण पठन की सार्थकता इसी में है की ह्रदय में श्रीरामप्रेम उत्पन्न होकर निरंतर बढ़ता जाए। स्वामीजी ने इसी बात को बारम्बार दोहराया है। श्रीराम प्रेम ज्ञान को सरस बना देता है। हमें विश्वास है की सभी साधकों की प्रार्थना होगी की प्रिय लागहु मोहि राम।
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गोस्वामी तुलसीदासजी विरचित श्रीरामचरितमानस में कहा गया है की रामकथा गूढ है जिसमें अनेक रत्न छिपे हुए हैं। जैसे पर्वतों मे छिपे हुए मणियों को देखने के लिए एक मर्मी की आवश्यकता होती है वैसे ही रामकथा की भी बात है। स्वामी तेजोमयानन्दजी ने अपने प्रवचनों में स्वयंप्रकाश भक्ति मणि को मधुर व सरल भाषा में प्रकट किया है। इसी प्रकार अध्यात्म के अन्यान्य विषयों पर भी प्रकाश डाला है। कथा श्रवण पठन की सार्थकता इसी में है की ह्रदय में श्रीरामप्रेम उत्पन्न होकर निरंतर बढ़ता जाए। स्वामीजी ने इसी बात को बारम्बार दोहराया है। श्रीराम प्रेम ज्ञान को सरस बना देता है। हमें विश्वास है की सभी साधकों की प्रार्थना होगी की प्रिय लागहु मोहि राम।