"मनः शोधनम्" स्वामी तेजोमयानंदजी की मौलिक रचना है|
इसकी व्याख्या करते हुए स्वामीजी मन व प्रवृत्तियों पर, मनः शुद्धि के उपायों की प्रक्रिया पर और मन के शुद्ध हो जाने के फलस्वरूप प्राप्त लाभ पर सम्यक प्रकाश डालते हैं| वे बताते हैं कि कैसे यह मन हमारी दिनचर्या के बीच से ही, विभिन्न परिस्थितियों में से हमको उठाकर - सैर कराने ले जाता है और फिर हमारे अनजाने ही हमको एक मनोवैज्ञानिक जाल में फँसा देता है और हमको परेशानी में दाल देता है| उक्त तथ्य को जिस स्पष्टता और गहराई से स्वामीजी प्रस्तुत करते हैं वर सचमुच विस्मयकारी है|
M2009VARIANT | SELLER | PRICE | QUANTITY |
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"मनः शोधनम्" स्वामी तेजोमयानंदजी की मौलिक रचना है|
इसकी व्याख्या करते हुए स्वामीजी मन व प्रवृत्तियों पर, मनः शुद्धि के उपायों की प्रक्रिया पर और मन के शुद्ध हो जाने के फलस्वरूप प्राप्त लाभ पर सम्यक प्रकाश डालते हैं| वे बताते हैं कि कैसे यह मन हमारी दिनचर्या के बीच से ही, विभिन्न परिस्थितियों में से हमको उठाकर - सैर कराने ले जाता है और फिर हमारे अनजाने ही हमको एक मनोवैज्ञानिक जाल में फँसा देता है और हमको परेशानी में दाल देता है| उक्त तथ्य को जिस स्पष्टता और गहराई से स्वामीजी प्रस्तुत करते हैं वर सचमुच विस्मयकारी है|