भगवद गीता के १६वे अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण पवित्र और जो सुधारी न जा सके ऐसी दोनो प्रकार की जीवात्माओं की बात बिना किसी मूल्यांकन के और बिना किसी व्यतिगत हुए करते है| जहाँ हमारा आंतिरिक सौंदर्य दूसरों का मुस्कान में झलकता है वही हमारी घृणा व् क्रोध जैसी कुवृतिंयों को ढक लेती है हमारे विचारो,व्यवहार, तप और दान में प्रतिबिम्बित होती है|
श्री कृष्ण हमारे विकल्प प्रस्तुत करते है. चुनाव् तो हमें ही करना है|
G2005VARIANT | SELLER | PRICE | QUANTITY |
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भगवद गीता के १६वे अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण पवित्र और जो सुधारी न जा सके ऐसी दोनो प्रकार की जीवात्माओं की बात बिना किसी मूल्यांकन के और बिना किसी व्यतिगत हुए करते है| जहाँ हमारा आंतिरिक सौंदर्य दूसरों का मुस्कान में झलकता है वही हमारी घृणा व् क्रोध जैसी कुवृतिंयों को ढक लेती है हमारे विचारो,व्यवहार, तप और दान में प्रतिबिम्बित होती है|
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